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चक्रव्यूह

>> Sunday, September 25, 2016

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सागर के किनारे
गीली रेत पर बैठ
अक्सर मैंने सोचा है
कि-
शांत समुद्र की लहरें
उच्छ्वास लेती हुई
आती हैं और जाती हैं ।
कभी - कभी उन्माद में
मेरा तन - मन भिगो जाती हैं|

पर जब उठता है उद्वेग
तब ज्वार - भाटे का रूप ले
चक्रव्यूह सा रचा जाती हैं
फिर लहरों का चक्रव्यूह
तूफ़ान लिए आता है
शांत होने से पहले
न जाने कितनी
आहुति ले जाता है ।

इंसान के मन में
सोच की लहरें भी
ऐसा ही
चक्रव्यूह बनाती हैं
ये तूफानी लहरें
न जाने कितने ख़्वाबों की
आहुति ले जाती हैं ।

चक्रव्यूह -
लहर का हो या हो मन का
धीरे - धीरे भेद लिया जाता है
और चक्रव्यूह भेदते ही
धीरे -धीरे हो जाता है शांत
मन भी और समुद्र भी .

40 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 9/25/2016 7:02 PM  

दीदी,
लग ही नहीं रहा कि आपको इतने दिनों बाद पढ़ रहा हूँ. बिलकुल वही अन्दाज़ और वही कविता की गहराई. आज भी आपका अन्दाज़ निराला है. हमेशा की तरह आपने इस कविता में भी सागर की लहरों और भंवरों के चक्रव्यूह को मानव मन से जोडकर एक हल भी सुझाया है कि जो इस भंवर को पार करता है, वही शान्ति को उपलब्ध होता है!
बहुत बढ़िया दीदी. बस स्वस्थ रहकर यूँ ही लिखती रहिये!

Kavita Rawat 9/25/2016 7:10 PM  

सच चक्रव्यूह भेदकर भी शांति मिल पाती है..
बहुत सुन्दर द्रष्टान्त

कौशल लाल 9/26/2016 8:11 AM  

बहुत सुन्दर......

vandana gupta 9/26/2016 12:53 PM  

एक बार फिर उन्ही तेवर के साथ ...........बहुत प्यारी रचना जीवन दर्शन समेटे ..........बधाई दी

Anonymous,  9/26/2016 1:08 PM  

संगीता जी नमस्कार !

अापकी लेखनी की कुछ अलग ही बात है, अापको पढऩा हमेशा ही सुखद होता है। बहुत दिनों के बाद अाईं अाप ब्लाग पर, अाशा करती हूं सब कुशल है

सादर
मंजु

shikha varshney 9/26/2016 1:13 PM  

मन का समुन्द्र और लहरों से ख्याल .... कितना सुखद है आना ब्लॉग पर फिर से :)

Kailash Sharma 9/26/2016 1:59 PM  

बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...ब्लॉग जगत में आपका फिर से आना बहुत अच्छा लगा...

Sadhana Vaid 9/26/2016 2:16 PM  

कितनी सुन्दर रचना है ! काश इस चक्रव्यूह को भेदने का मार्ग जानने वाला अभिमन्यू हर मन में अवस्थित हो ! एक समय के बाद हर तूफ़ान शांत हो जाता है वह समुद्र का हो या मन का ! यह अलग बात है इस बीच कितनी आहुतियाँ समुद्र ले लेता है और कितने सपने मन में दफ़न हो जाते हैं !

Anita 9/26/2016 4:38 PM  

सुंदर व सार्थक बात..

Maheshwari kaneri 9/26/2016 4:41 PM  

बहुत सुन्दर और सार्थक ...आभार

डॉ. मोनिका शर्मा 9/26/2016 5:51 PM  

चक्रव्यूह -
लहर का हो या हो मन का
धीरे - धीरे भेद लिया जाता है
और चक्रव्यूह भेदते ही
धीरे -धीरे हो जाता है शांत
मन भी और समुद्र भी ....

वाह ... वैचारिक भाव |

वाणी गीत 9/26/2016 6:17 PM  

चक्रव्यूह भेद लेने तक की ही समस्या फिर सब शांत स्निग्ध!
लाज़वाब!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ 9/26/2016 6:40 PM  

बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण कविता . वाह ..

सुशील कुमार जोशी 9/26/2016 8:37 PM  

वाह बहुत सुन्दर ।

संध्या शर्मा 9/26/2016 10:17 PM  

बहुत सुन्दर व सकारात्मक भाव युक्त रचना ...

मनोज कुमार 9/26/2016 11:20 PM  

आप से शायद ब्लॉग की दुनिया में आने का चक्रव्यूह भेदने का साहस जुटा सकूं।

महेन्‍द्र वर्मा 9/27/2016 10:20 PM  

मन का समुद्र और समुद्र का मन.....
सचमुच, एक जैसा स्वभाव ।
हृदय को प्रभावित करती एक सुंदर कविता ।

प्रतिभा सक्सेना 9/28/2016 10:20 AM  

मन और समुद्र -एक ही तत्व :वही आलोड़न-विलोड़न ,ज्वार-भाटा और फिर संयत होने का क्रम

Amrita Tanmay 9/28/2016 1:39 PM  

परिपूर्णतम अभिव्यक्ति ।

रश्मि प्रभा... 9/28/2016 2:27 PM  

चक्रव्यूह न हो तो जीवन के विभिन्न आयामों को नहीं समझ सकते
जाना है, निकलने का प्रयास
असफलता के बाद ही सफलता है

Suman 9/29/2016 10:13 AM  

बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आपको फिर से सक्रिय देखकर सच में अच्छा लग रहा है ! ऐसे ही हमेशा लिखा कीजिये अभिव्यक्ति के रूप भावनाओं का रेचन होना जरुरी है !फेसबुक पर आपके इस रचना का लिंक देखकर मैंने तभी पढ़ा है, बस आजकल उम्र के हिसाब से टिप्पणियों की भागदौड़ जरा सी कम हो गई है :) टिप्पणी करूँ या न करूँ लेकिन जितने भी ब्लॉग मैं फॉलो करती हूँ उन सबको मन से पढ़ती हूँ उन सब में आपका भी ब्लॉग है खैर,

सच कहा है मन चक्रव्यूह के समान ही है सटीक तुलना की है समुद्र की लहरों के साथ लहरों के उथल पुथल के बाद सब कुछ शांत हो जाता है तभी आकाश के चाँद का खूबसूरत प्रतिबिंब पानी में दिखाई देता है वैसे ही मन के विचारों की उथल पुथल जब शांत होती है तभी साक्षी जो की हमारा रूप है प्रतिबिंबित होता है ! सार्थक रचना के लिए बधाई !

Onkar 10/02/2016 3:34 PM  

बहुत बढ़िया

Parul kanani 10/04/2016 8:17 PM  


aur ye chakrvyuh humko bahut uljha deta hai!
umda

दिगम्बर नासवा 10/13/2016 1:17 PM  

इतने दिनों बाद आज कोई रचना आपकी पढ़ रहा हूँ ... पर जैसे पुराने भाव गहन चिंतन वैसे का वैसे ही है ...
सच है मन शांत हो जाता है जैसे सागर हो जाता है हर ज्वार भाटे के साथ ... और यादें भी रह जाती हैं जगह जगह निशाँ छोड़ती हुयी ...

सदा 10/17/2016 9:40 PM  

waaaah ....hmesha ki tarah lajwaaab lekhn ....badhaiii
sadar

Asha Joglekar 10/20/2016 9:02 PM  

वाह, यह चक्रव्यूह भेदने में ही तो जिंदगी कट जाती है।

महेन्‍द्र वर्मा 10/29/2016 6:07 PM  


आपको दीप-पर्व की शुभकामनाएँ ।

Unknown 10/31/2016 8:59 PM  

सुन्दर व भावपूर्ण शब्द रचना
दीपावली की शुभकामनाएं .

Vocal Baba 11/27/2016 3:07 PM  

आज लंबे समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुूआ है। कुछ भी तो नहीं बदला।
कभी मैंने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तब से आपको पढ़ना शुरू किया है। हालांकि बीच में ब्लॉगिंग से ध्यान हटाना भी पढ़ा।
*********************
हमेशा की तरह बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता पढ़ने को मिली है। वैसे मैं तो बहुत कुछ सीखने के लिए भी आता हूं।

love 12/18/2016 8:12 PM  

wow very nice....

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Sanju 3/21/2017 6:05 PM  

साथॆक प्रस्तुतिकरण......
मेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....

shephali 4/14/2017 11:15 AM  

बहुत सुंदर दी।
मार्मिक कविता

कविता रावत 5/07/2017 2:40 PM  

आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

संजय भास्‍कर 9/12/2017 12:38 PM  

बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति सुंदर और भावपूर्ण कविता पढ़ने को मिली

Splendid Interiors 11/29/2018 10:36 AM  

I am amzaed by the way you have explained things in this post. This post is quite interesting and i am looking forward to read more of your posts.
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yashoda Agrawal 12/16/2019 10:40 AM  

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 17 दिसम्ब 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Kamini Sinha 7/23/2022 10:25 PM  

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-7-22} को "सफर यूँ ही चलता रहें"(चर्चा अंक 4500)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा

Bharti Das 7/24/2022 3:56 PM  

वाह बेहतरीन प्रस्तुति

Jyoti Dehliwal 7/24/2022 10:30 PM  

बहुत सुंदर।

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