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ईमानदारी से

>> Tuesday, April 12, 2011



ईमानदारी से
चाहती हूँ कहना
कि
मैं ईमानदार नहीं.
क्यों कि
जो कहती हूँ
वो करती नहीं
जो सोचती हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहती नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीती चली जाती हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलती चली जाती हूँ.
 
जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा  देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए 
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .

88 comments:

Anupama Tripathi 4/12/2011 8:06 AM  

मान लेती हूँकिज़िन्दगी जी रही हूँ.जब कि जानती हूँकिपल पल मर रही हूँ.इसीलिए कहती हूँ ईमानदारी सेकिमैं ईमानदार नहीं .

बहुत इमानदारी से मन की बात लिखी है ......!!
एक एक शब्द काबिले तारीफ़ है ...!!

सुज्ञ 4/12/2011 8:18 AM  

खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.

सभी के मन को अभिव्यक्ति दे दी आपनें!! सार्थक

संजय भास्‍कर 4/12/2011 8:21 AM  

आदरणीय संगीता स्वरुप जी
नमस्कार !
मन की अथाह गहराईयों तक उतारते हुए लफ्ज़
अपनी कथा स्वयं ही कह रहे हैं
अभिवादन .
.................बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद|

संजय भास्‍कर 4/12/2011 8:21 AM  

बहुत ही खूबसूरत रचना,
......दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

Apanatva 4/12/2011 8:28 AM  

badee sunder abhivykti............

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 4/12/2011 8:29 AM  

ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
--
सुन्दर रचना!
--
ईमानदारी के धरातल पर सभी का यही हाल है!
--
रामनवमी की शुभकामनाएँ!

abhi 4/12/2011 8:37 AM  

सबका तो यही हाल है, खैर, सबका हो या ना भी हो...मेरा तो यही हाल है जो कविता में आपने कहा है..:)

रश्मि प्रभा... 4/12/2011 9:21 AM  

यह ईमानदारी क्या कम है
कि हारके दिल ये कहे
कि मैं ही ईमानदार नहीं

राजेश उत्‍साही 4/12/2011 9:40 AM  

कहते हैं सबसे अधिक ईमानदारी बेइमानी के धंधे में मिलती है।
*
अपने को ईमानदार नहीं मानने से बड़ी ईमानदारी क्‍या होगी।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 4/12/2011 9:51 AM  

बहुत खूब संगीता जी ! हर कोई बस भ्रम में ही तो जी रहा है !

Er. सत्यम शिवम 4/12/2011 11:09 AM  

जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ

बहुत सुंदर,सच में आज कोई भी तो नहीं है ईमानदार....खुबसुरत।

मनोज कुमार 4/12/2011 11:18 AM  

एक ईमानदार प्रयास भावों को अभिव्यक्ति देने का। कुछ शे’र याद आ गए --

रास्ते में वो मिल गया अच्छा लगा,
सूना-सूना रास्ता अच्छा लगा।
कितने शिकवे थे मुझे थे तकदीर से,
आज क़िस्मत का लिखा अच्छा लगा।
मुझमें क्या है मुझको कब मालूम है,
उससे पूछो उसको क्या अच्छा लगा।

संजय कुमार चौरसिया 4/12/2011 12:13 PM  

बहुत ही खुबसुरत रचना
रामनवमी पर्व की ढेरों बधाइयाँ एवं शुभ-कामनाएं

Anita 4/12/2011 12:35 PM  

जहाँ सब कुछ बदल रहा हो वहाँ हम नहीं बदलेंगे तो कैसे चलेगा? अबदल तो बस एक वही है !

vandana gupta 4/12/2011 12:39 PM  

गज़ब कर दिया……………इतनी ईमानदारी भी ठीक नही………………सबके मन की बात सार्वजनिक कर दी।

महेन्‍द्र वर्मा 4/12/2011 1:15 PM  

वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार

मौलिक अनुभूतियों की मौलिक अभिव्यक्ति।
प्रभावशाली पंक्तियां।

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

shikha varshney 4/12/2011 1:36 PM  

वाह बेईमानी को भी क्या इमानदारी से माना है ...:) ये क्या कम है.थोड़ी बेईमानी तो बनती है जीने के लिए.जैसे खाने में नमक :)
बहुत बहुत सुन्दर और गहरी अभिव्यक्ति.

प्रवीण पाण्डेय 4/12/2011 1:44 PM  

इससे बड़ी ईमानदारी नहीं देखी।

वाणी गीत 4/12/2011 2:39 PM  

इतनी ईमानदारी से तो सब कहा ,कैसे माने की ईमानदार नहीं ...
बहुत भाई मन को ये ईमानदारी !

बाबुषा 4/12/2011 2:47 PM  

sab beimaan hain ma !
kam se kam aap to bataati ho ! itni imaandaari dikhaayee !
kitna achcha likha hai !

شہروز 4/12/2011 3:03 PM  

kya bat hai
ईमानदारी से
चाहती हूँ कहना
कि
मैं ईमानदार नहीं.

kshama 4/12/2011 3:06 PM  

जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
Kitnee sahajtaa aur sadagee se aapne ye baat kah dee!

अनामिका की सदायें ...... 4/12/2011 3:32 PM  

behad imaandari se aapne zurm kabool kar liya....ye badhappan bhi har kisi ke bas ki baat nahi hai.

Suman 4/12/2011 4:23 PM  

बहुत प्यारी ईमानदारी !

इस्मत ज़ैदी 4/12/2011 4:36 PM  

kya bat hai !
Sangeeta ji ap ko padhna hamesha hi ek sukhad anoobhooti pradan karta hai

udaya veer singh 4/12/2011 5:23 PM  

vishay- vastu ka kinchit matra aatmavlokan, hi yatharth ka pratinidhi hota hai , aapne to kavy ke hanthon nirupit kar diya hai . bahut khub .
sadhvad .

प्रतुल वशिष्ठ 4/12/2011 5:34 PM  

.

बहुत ईमानदारी से
चाहता हूँ कहना
कि
आप ईमानदार नहीं.
क्यों कि
आप जब भी
करते हो प्रशंसा
प्रशंसासूचक
एक-आद शब्द
अपने पास ही रख लेते हो.
ग़लत को
ग़लत नहीं कहते.
केवल
सुधार की कोशिश करते हैं
बड़ी शालीनता से.
आप ईमानदार नहीं.
देखा है मैंने हर कहीं.

यही देखा है
हर किसी ब्लॉग के टिप्पणी बॉक्स में.
यही देखा है
ब्लॉग की समीक्षा के समय.
फटकारना तो आपने सीखा ही नहीं.
समीक्षा के तराजू पर
डंडी मारते हो.
जितने भी शब्द हैं प्रशंसा के
दो-एक दबा जाते हो.
आप ईमानदार नहीं.
देखा है मैंने हर कहीं.

क्यों किसी की
बिना जरूरत
आव-भगत करो.
क्यों किसी को
खटिया के सिरहाने बैठाओ.
क्यों किसी के घर
ज़्यादा आओ-जाओ.
क्यों किसी की
सच्ची आलोचना कर
उसे उलझने को उकसाओ.
इसलिये बोलो
केवल मीठे वचन
वो भी कंजूसी से
अधिक बोले नहीं
कि उसने नजदीकियाँ बढायीं.
इसलिये खुद की शांति के लिये
जरूरी है
कि
कुछ ईमानदारी से दूरी बनाकर रहा जाये.
आप ईमानदार नहीं.
देखा है मैंने हर कहीं.

.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) 4/12/2011 5:57 PM  

ओह! इससे जायदा इमानदारी अब क्या मिलेगी? आपने जो कहा....

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/12/2011 6:43 PM  

सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया ...

प्रतुल जी ,

अब आपकी बातों पर क्या कहूँ ? आपने तो सारे राज़ ही खोल दिए हैं ...बहुत ईमानदारी से लिखा है आपने ...आभार

Vaanbhatt 4/12/2011 7:30 PM  

ye apraadhbodh sirf imaandaaron ko hi ho sakta hai...varna aajkal beimaan badi shiddat se khud ko imaandaar batate ghoom rahe hain...vo kya hai-chor machaye shor...ek maandaar prayas...sarahniy...

डॉ. मोनिका शर्मा 4/12/2011 8:38 PM  

बहुत सुंदर...मन के सीधे सच्चे भाव उकेरे हैं आपने.....

Roshi 4/12/2011 9:29 PM  

bahut hi imandari ki sunder prastuti

ashish 4/12/2011 9:36 PM  

मुझे भी प्रसंशा के शब्द ढूढने में बेईमानी करनी पड़ी . ईमानदारी से बेईमानी के ताल्लुकात . क्या बात , क्या बात , क्या बात .

ज्योति सिंह 4/12/2011 11:03 PM  

ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .
wakai laazwaab rachna hai ,aesa hi hota hum mante nahi .

mridula pradhan 4/12/2011 11:08 PM  

aapki imandari bahut achchi lagi.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 4/13/2011 12:14 AM  

शीर्षक "ईमानदारी से" और वर्णन यह कि मैं ईमानदार नहीं.. संगीता दी,
इस सादगी पे कौन न मर जाए ए खुदा!!

Satish Saxena 4/13/2011 12:27 AM  

क्या बात है ....!
बहुत बढ़िया लाइने हैं यह ! शुभकामनायें आपको !!

वर्षा 4/13/2011 6:44 AM  

इसे पढ़कर बहुत से लोग ये सोच रहे होंगे, हां हम भी तो इमानदार नहीं

सदा 4/13/2011 10:23 AM  

गहन शब्‍दों के साथ बेहतरीन शब्‍द रचना ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 4/13/2011 1:57 PM  

सटीक अभिव्यक्ति है दी...
सादर...

Unknown 4/13/2011 7:56 PM  

वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार

अनुभूतियों की मौलिक अभिव्यक्ति।,बहुत इमानदारी ज़िन्दगी लिखी है

प्रतिभा सक्सेना 4/13/2011 9:10 PM  

आपने तो अपने बहाने सब का सच सामने ला दिया .
बहत 'जरूरी है
कि '
प्रतुल जी ने सही कहा -ईमानदारी से दूरी बनाकर रहा जाये.'

ZEAL 4/14/2011 1:15 PM  
This comment has been removed by the author.
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार 4/14/2011 3:02 PM  

आदरणीया दीदी संगीता जी
प्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !

कविताएं आपकी हमेशा प्रभावित करती हैं …
आज की इस कविता के आगे तो नत मस्तक हूं …
… अवश्य ही इस स्तर की रचनाएं आपके यहां पहले भी पढ़ी हैं …

अभी इस रचना के भाव-प्रभाव के वलय में खोये रहने का मन है …
मैं ईमानदार नहीं
क्यों कि जो कहती हूँ वो करती नहीं
जो सोचती हूँ वो होता नहीं
जो होता है वो चाहती नहीं …


हाय रे इंसान की मज़बूरियां !

खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ
कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार …


ईमानदारी की यह पराकाष्ठा ! … और कहन का यह अंदाज़ !

सच्चे मन से आपकी इंसानियत को प्रणाम !
आपकी लेखनी को नमन !!

* श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Nityanand Gayen,  4/14/2011 5:06 PM  

Bahut sunder

Dr Varsha Singh 4/14/2011 11:58 PM  

गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक आभार.

Dr (Miss) Sharad Singh 4/15/2011 12:50 AM  

खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.


अत्यंत भावप्रवण कविता....

धीरेन्द्र सिंह 4/15/2011 12:27 PM  

क्या खूब कहा है आपने, चुभता है कहीं-कहीं.

जयकृष्ण राय तुषार 4/15/2011 9:37 PM  

जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
आदरणीय संगीता जी बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |

जयकृष्ण राय तुषार 4/15/2011 9:37 PM  

जो बदल जाये
वक़्त के साथ
तो बताओ
वो कैसे
रह पायेगा ईमानदार
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
आदरणीय संगीता जी बहुत ही बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |

शोभना चौरे 4/15/2011 11:37 PM  

ईमानदारी से लिखी गई इमानदार अभिव्यक्ति |

Khare A 4/16/2011 10:25 AM  

ye apne aap main ek imaandaar abhuvyakti hai!

kammal ki kavita!

amrendra "amar" 4/16/2011 5:20 PM  

बहुत ही खूबसूरत रचना,

निवेदिता श्रीवास्तव 4/16/2011 6:07 PM  

बेहद ईमानदार स्वीकरोक्ति ....काबिले तारीफ़ ....आभार !

Rakesh Kumar 4/16/2011 10:16 PM  

आपने कहा 'मै ईमानदार नहीं'
आपका यह कहना क्या'ईमानदारी' नहीं.
लीजिये ईमानदारी से ही आपकी यह पोस्ट पूरी हुई
आपकी ईमानदारी की चाहत भी अधूरी न रही

बहुत खूब,आपकी ईमानदारी पर मैं तो हुआ कुर्बां.क
सादर नमन आपकी इस नम्रता के लिए.

आपने मेरे ब्लॉग पर आ मेरा मनोबल बढ़ाया है.
आपको पुनः मेरे ब्लॉग पर राम-जन्म का सादर बुलावा है.कृपया आइयेगा जरूर.

अभिव्यक्ति 4/17/2011 9:32 AM  

क्या बात है !! वास्तव में सही है हम अपने आप के लिए ईमानदार नहीं क्योंकि परिस्थितियाँ हमे आपने अनुकूल ढलने को मजबूर कर देती है वो सब करवाती है जो हम नहीं करना चाहते ..............
खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
आप की पंक्तियाँ भी ये ही कह रही है !

हरीश सिंह 4/17/2011 3:43 PM  

बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

आनंद 4/18/2011 1:34 PM  

खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
जब कि जानती हूँ
कि
पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं ....
..
..
हा हा हा ...कितनी इमानदारी से अपनी बेईमानी उफ्फ्फ इमानदारी क़ुबूल किया है आपने ...सच में मज़ा आगया ... आपके इस ब्लॉग से नही जुड़ पाया था अबतक संगीता जी ...अब देखता हूँ कैसे आप लिखा एक भी शब्द बिना पढ़े गुजर जाता है आँखों से !
आपको याद है जब मैंने ब्लॉग जगत में पहला कदम रखा था तो आपने मुझे अपनी ऊँगली पकड़ा दिया था ..आप से मेरा सम्बन्ध ममता और वात्सल्य का है ...जो लेखन से इतर भी रहेगा...कई बार जीवन का संघर्ष थोड़ा कम समय देता है...इसलिए उदारता का त्याग मत करना...आपको प्रणाम संगीता जी !

monali 4/18/2011 3:27 PM  

Behad imaandaar aur safal koshish... pasand aayi :)

Vijuy Ronjan 4/18/2011 4:28 PM  

इससे ज्यादा ईमानदारी और क्या हो सकती है संगीता जी की आपने अपने ही ईमान पे प्रश्न चिह्न लगा दिया...पहरेदार सोच भी बेईमान हो जा सकते हैं यह तो ईमानदारी से हम स्वीकार कर ही सकते हैं...रक्षक भक्षक तो हो ही जाते हैं....एक ईमानदार प्रस्तुति के लिए ईमान से बधाई...
हाँ , आपकी सलाह शिरोधार्य....अगली प्रस्तुतियाँ अलग अलग ही करूंगा क्षणिकाओं को छोडकर।
आभार।

sheetal 4/18/2011 6:47 PM  

Bahut hi sundar....ya yun kahiye ki jeevan ki sacchai.
har ek ki yahi dastaan hain.
jo chahte hain wo hota nahi
aksar wahi hota hain jo hum
chahte nahi.
isiliye har uljhan se bach niklne
ka bas ek hi raasta hain.
badal lo apni soch ko,chahe ham andar se tutte rahe,aankho main cheepa kar aansu bas muskura kar keh
do ki ab ham imaandaar na rahe.

sheetal 4/18/2011 6:47 PM  

Bahut hi sundar....ya yun kahiye ki jeevan ki sacchai.
har ek ki yahi dastaan hain.
jo chahte hain wo hota nahi
aksar wahi hota hain jo hum
chahte nahi.
isiliye har uljhan se bach niklne
ka bas ek hi raasta hain.
badal lo apni soch ko,chahe ham andar se tutte rahe,aankho main cheepa kar aansu bas muskura kar keh
do ki ab ham imaandaar na rahe.

Unknown 4/19/2011 12:58 PM  

अदभुत रचना और सत्यता को ईमानदारी से उजागर कर, उम्दा लफ़्ज़ों का चयन! प्रशंशनिये रचना...

महेन्द्र श्रीवास्तव 4/19/2011 1:18 PM  

पल पल मर रही हूँ.
इसीलिए
कहती हूँ ईमानदारी से
कि
मैं ईमानदार नहीं .

वाकई बहुत सुंदर है

Amrita Tanmay 4/19/2011 5:48 PM  

क्या कम है यह ईमानदारी ...बहुत खूब संगीता जी.

मेरा साहित्य 4/20/2011 6:57 PM  

खुद की सोचों पर भी
बिठा देती हूँ कभी - कभी
अनदेखा पहरेदार
और मान लेती हूँ
कि
ज़िन्दगी जी रही हूँ.
bahut khoob
rachana

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 4/20/2011 7:31 PM  

आदरणीया संगीता जी ,
जो आपसे अभिव्यक्त हुआ है उससे बढ़कर ईमानदार कुछ भी नहीं !
यही तो सच्ची ईमानदारी है कि जिंदगी की कशमकश को बेबाकी से कहा जाए |
यह ईमानदारी साहस भरी है ...
प्रणाम स्वीकारें |

पूनम श्रीवास्तव 4/20/2011 7:44 PM  

sangeeta di
aswasthta ke chalte bahut hi vilamb se tippni de rahi hun .
hriday se xhma prarthini hun.
aapki har rachname ek alag hi aakarshhan hota hai.
bahit hi gahrai se likhti hain aapji bhi likhti vo ek aoni amit chhap chhod jaati hai.
bahut hi gahan anubhuti ke saath rachi gahan abhivyakti.
bahut bhut badhai
poonam

Kunwar Kusumesh 4/21/2011 9:49 AM  

आपकी इस ईमानदारी को सलाम.

hamarivani 4/21/2011 9:15 PM  

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

देवेन्द्र पाण्डेय 4/22/2011 9:33 AM  

...सच्ची अभिव्यक्ति।

Arvind Mishra 4/22/2011 7:26 PM  

भाव प्रवण!

Anonymous,  4/23/2011 12:18 PM  

मान लेती हूँकिज़िन्दगी जी रही हूँ.जब कि जानती हूँकिपल पल मर रही हूँ.इसीलिए कहती हूँ ईमानदारी सेकिमैं ईमानदार नहीं

बहुत गहरी अभिव्यक्ति .... और ईमानदार सोच :-)

Patali-The-Village 4/24/2011 8:47 AM  

बहुत ही खुबसुरत रचना| धन्यवाद|

Mohinder56 4/25/2011 12:39 PM  
This comment has been removed by the author.
Mohinder56 4/25/2011 12:41 PM  

सुन्दर परिपक्व रचना, शायद सभी के दिलों की बात कह रही है.

कैसे रह पाऊं मैं इमानदार खुद से व सब से
हर एक नजर तोलती मुझे तरह तरह से है

दिगम्बर नासवा 4/25/2011 1:17 PM  

Is baat ki imaandaari se swikaar krna bhi kahaa aasaan hai ...

Vandana Ramasingh 4/25/2011 2:46 PM  

सोचने की बात है कि ईमानदार वक़्त(/परिस्थिति ) नहीं या व्यक्ति ......कोशिश ईमानदार हो तो व्यक्ति को ईमानदार कहा ही जाना चाहिए ....दीदी किस खूबी से आपने अपनी ईमानदारी को सम्मान दिला ही दिया

M VERMA 4/25/2011 7:24 PM  

बहुत सुन्दर भावना प्रधान रचना

Akshitaa (Pakhi) 4/26/2011 9:56 AM  

बहुत सुन्दर कविता..बधाई.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!

Dinesh pareek 4/27/2011 12:41 PM  

वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक

vidya 1/21/2012 10:17 AM  

बहुत सुन्दर संगीता दी...
सच में..खुद से बेईमानी कर रहे हैं हम सभी...फिर कहाँ से ईमानदार हुए.

Yashwant R. B. Mathur 1/21/2012 10:48 AM  

बहुत अच्छा लिखा है आंटी।


सादर

Unknown 1/21/2012 11:50 AM  

बेहद ईमानदारी से भावनाओं को अभिव्यक्त करती कविता .साहित्य में अद्भुत प्रवाह प्रस्तुत करती. हमेश की तरह आपकी लेखनी का कमाल बधाई

सदा 1/21/2012 11:57 AM  

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Nidhi 1/21/2012 7:21 PM  

हम सभी बेईमान है....

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