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बलात्कार ??????????????????

>> Friday, July 23, 2010




बलात्कार,

केवल नहीं होता 

नारी देह का ,

और ना ही 

यह शब्द 

बंधा है 

मात्र 

नारी की ही 

संवेदनाओं से ,


असीमित है 

इस शब्द की 

परिभाषा ,

नर और नारी 

दोनों ही 

चाहे - अनचाहे 

अभिशप्त हो जाते हैं 

इस शब्द की 

परिधि में .



बस होता है यूँ 

कि

भुगतना पड़ता है 

परिणाम 

मात्र नारी देह को 

पुरुष देह तो 

परिणाम से परे है



जब भी 

अनचाही इच्छा 

थोप दी जाती है 

एक पक्ष की 

दूसरे पक्ष पर 

तो - 

हो जाता है 

बलात्कार ....






42 comments:

kshama 7/23/2010 8:18 PM  

Bahut sahi kaha aapne..naa jane, naari deh aur man,dono, aise kitne balatkaar sahta rahta hai..

rashmi ravija 7/23/2010 8:42 PM  

नई और सटीक परिभाषा...कोई भी अनचाहा काम जबरदस्ती करवाना उतना ही दुखदायी है...

Amrendra Nath Tripathi 7/23/2010 9:16 PM  

विकृति को उसकी व्यापकता में देखती कविता ! आभार !

Udan Tashtari 7/23/2010 9:30 PM  

सही परिभाषित किया. बढ़िया.

रश्मि प्रभा... 7/23/2010 9:32 PM  

parinaam सामाजिक है....मन के हारे हार है , नारी के साथ क्यूँ अभिशाप? जो है वह अन्याय करनेवाले का है, और उस अन्याय में स्वर देनेवालों का

संगीता स्वरुप ( गीत ) 7/23/2010 9:43 PM  

सभी पाठकों से नम्र निवेदन है कि इसे केवल नारी से ना जोड़ें....विस्तार से देखें....

आभार

सम्वेदना के स्वर 7/23/2010 10:33 PM  

वैचारिक बलात्कार की सटीक परिभाषा आपने दी… संगीता दी!!

अनामिका की सदायें ...... 7/23/2010 10:37 PM  

जब भी
अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ...

बिलकुल सही कहा आपने इसके लिए सिर्फ नारी ही शोषित नहीं हैं पुरुष भी शोषण का शिकार बनते हैं.

दोनों पक्षों को ही भुगतना पड़ता है. हाँ जहाँ नारी देह के बालात्कार की बात आती है तो पुरुष की बजाये नारी अधिक शोषित होती है.

सुज्ञ 7/23/2010 10:42 PM  

कवियत्री नें बलात्कार का सही शाब्दिक अर्थ पुनः स्थापित कर दिया।

जब भी
अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की,
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ....

वास्तविक परिभाषा!!

मुदिता 7/23/2010 11:15 PM  

दीदी ,
सही लिखा है....और बलात्कार सिर्फ देह का ही नहीं होता..बलात्कार का मतलब तो इसी शब्द में निहित है.. बल से कराया गया कार्य.... बिना इच्छा के... हाँ ज्यादातर यह बलात्कार नारी के साथ होता है.. चाहे दैहिक हो या मानसिक... परन्तु कभी कभी बहुत से केसेस में पुरुष के साथ भी यह शोषण होता है...और दैहिक बलात्कार से भी ज्यादा खतरनाक परिणाम देता है मानसिक बलात्कार..
बहुत अच्छी रचना लिखी ..बधाई

मनोज कुमार 7/23/2010 11:35 PM  

आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।
यह बेबाकी तथा साफगोई का बयान है।

रचना दीक्षित 7/23/2010 11:39 PM  

बहुत गहन अभिव्यक्ति पर बहत कटु.स्त्री जीवन का कटु सत्य

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 7/23/2010 11:41 PM  

संगीता दी,
काम करने का जगह पर इस तरह का बलात्कार रोज होता है..हर ऊपर वाला अफसर अपने मातहत के साथ बलात्कार करता है..सच पूछिए त ई भावना झूठा अहम् से पैदा होता है... समाज में मिलकर, साझेदारी से काम करने का भावना खतम होता जा रहा है, उसी का ई परिनाम है..आप स्पस्ट कर दी हैं एही से हम नारी अऊर पुरुस के बारेमें कुछ नहीं कह रहे हैं...लेकिन एक अंतर जरूरबोलना चाहेंगे... सारीरिक बलात्कार से जहाँ समाज में नजायज बच्चा पैदा होता है, ओहीं ई मानसिक बलात्कार से केतना अच्छा बिचार जन्म लेने से वंचित रह जाता है.. छोटा मुँह बड़ा बात बोल गए बुझाता है..
सलिल

Sadhana Vaid 7/23/2010 11:42 PM  

क्या कहूँ ! बिलकुल निशब्द हूँ ! मानसिक बलात्कार के कुछ पुरुषों की वेदना को मैंने भी देखा है ! लेकिन उनकी पीड़ा अनचीन्ही ही रह जाती है क्योंकि शायद उस पर इतने बवाल खड़े नहीं होते या फिर अपने इस बलात्कार की चर्चा भी किसी पुरुष को स्वीकार नहीं होती ! यह अलग बात है कि नारी का बलात्कार चाहे मानसिक हो या दैहिक चाहे अनचाहे सार्वजनिक हो ही जाता है ! आपकी रचना ने स्तब्ध कर दिया ! बहुत खूब !

Deepak Shukla 7/23/2010 11:42 PM  

Hi.. Di..

Aapki soch vishal hai..aur man bada.. Tabhi aap es shabd ko vistrut rup se paribhashit kar rahi hain.. Sahi kahna hai aapka..

Shabdik arthon main bhi es shabd ko kisi ling vishesh se baanda nahi gaya hai.. Balki bal purvak kuchh bhi karna aur karvan.. Balatkar ki hi paribhasha main aata hai.. Kavita ke madhyam se es paricharcha ko vistrut ayaam dene ke liye badhai ki patr hai..

Deepak..

ब्लॉ.ललित शर्मा 7/24/2010 7:30 AM  

सही कहा है आपने

शुभकामनाएं

Arvind Mishra 7/24/2010 8:46 AM  

बलात्कार सुपरिभाषित -एक समय यह शब्द ही समाज में बैन सा था -तब बी बी सी ने गढ़ा था बलान्न्यन मगर बलान्नयन तो हाईजैक है ,क्यों ?

Shah Nawaz 7/24/2010 9:11 AM  

बेहतरीन रचना, एकदम सटीक और सही परिभाषा........ बहुत खूब!


जब भी
अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की,
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ....

राजकुमार सोनी 7/24/2010 11:44 AM  

बिल्कुल सही लिखा है संगीता जी आपने
एक सौ एक फीसदी सहमत हूं आपकी भावनाओं से
इधर.. 30 जुलाई को मेरी किताब का विमोचन है
उसकी तैयारी में लगा हुआ हूं
सो ब्लागों पर जाना कम हो पा रहा है
आशा है आपका स्नेह बरकरार रहेगा

प्रवीण पाण्डेय 7/24/2010 12:56 PM  

पीड़ा मानसिक होती है जो सिमट कर रह जाती है नारी की आँखों में। हृदय टटोलती प्रस्तुति।

सूर्यकान्त गुप्ता 7/24/2010 1:11 PM  

चंद पंक्तियों मे सब कुछ कह दिया है आपने। अंतरमन को झकझोर देने वाली कविता। जिस रूप मे इस शब्द का प्रयोग होता है उसका पर्याय बन गया है यह्। वास्तव मे 'किसी भी कार्य के लिये जबरदस्ती किया जाना' होता है शायद इसका अर्थ।

जब भी

अनचाही इच्छा

थोप दी जाती है

एक पक्ष की

दूसरे पक्ष पर

तो -

हो जाता है

बलात्कार ....
सार्थक अभिव्यक्ति…………

हरकीरत ' हीर' 7/24/2010 1:46 PM  

जब भी

अनचाही इच्छा

थोप दी जाती है

एक पक्ष की

दूसरे पक्ष पर

तो -

हो जाता है

बलात्कार ....

सही मायनों में तो बलात्कार मन की इच्छाओं से bhi hota है .......

aapne bkhoobi ise paribhashit kiya .......!!

M VERMA 7/24/2010 2:26 PM  

जब भी


अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ....
और फिर बलत्कृत स्त्री और पुरूष से परे भी होता है.
सही और सटीक बात .. रचना

vandana gupta 7/24/2010 3:43 PM  

जब भी
अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की,
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ....

ना जाने कब कब किस किस रूप मे हर कोई एक दूसरे की भावनाओं का बलात्कार करता है पता भी नही चलता मगर उस ब्लात्कार की इस समाज मे कहीं कोई सजा नही है……………आपने ब्लात्कार शब्द के नये और सटीक मायने दिये हैं…………………आपकी अब तक की शायद सबसे बेहतरीन रचना है ।

shikha varshney 7/24/2010 3:46 PM  

जब भी

अनचाही इच्छा

थोप दी जाती है

एक पक्ष की

दूसरे पक्ष पर

तो -

हो जाता है

बलात्कार ....
एकदम सटीक परिभाषा दी है ...
एकदम सहमत आपसे.

sanu shukla 7/24/2010 4:22 PM  

बहुत सही परिभाशित किया है...!!

बलात्कार का मतलब भी यही है कि बल के द्वारl जबर्दस्ती किसी से उसकी इच्छा के विरुद्ध कराया गया कोइ भी कार्य.....

कविता रावत 7/24/2010 6:14 PM  

भुगतना पड़ता है
परिणाम
मात्र नारी देह को
पुरुष देह तो
परिणाम से परे है
......सटीक अभिव्यक्ति…………

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" 7/24/2010 7:42 PM  

जब भी
अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ....

सत्य वचन ... स्थूल से सूक्ष्म को अलग करके आपने परिभाषित कर दिया ...

स्वप्निल तिवारी 7/24/2010 7:49 PM  

balaat-kar ..nam se hi jahire ho jata haio yah ki koi kam bal poorvak karya gaya to wahbalatklar ho gaya...bilkul sahi paribhasha batayi apne mumma ...

राजभाषा हिंदी 7/25/2010 7:07 AM  

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

Aruna Kapoor 7/25/2010 4:43 PM  

बलात्कार का सही में यही अर्थ है!...उत्कृष्ट रचना..बधाई!

दिगम्बर नासवा 7/25/2010 6:33 PM  

जब भी
अनचाही इच्छा
थोप दी जाती है
एक पक्ष की
दूसरे पक्ष पर
तो -
हो जाता है
बलात्कार ...
सही अर्थ खोजा है आपने .... दूसरों की इच्छा का मान रखना ही सही अर्थ में शिष्ट आचरण है ...

देवेन्द्र पाण्डेय 7/25/2010 8:44 PM  

जब भी

अनचाही इच्छा

थोप दी जाती है

एक पक्ष की

दूसरे पक्ष पर

तो -

हो जाता है

बलात्कार ....
...एकदम सही ढंग से परिभाषित किया है आपने.

विनोद कुमार पांडेय 7/26/2010 8:22 AM  

मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख देने वाली एक सटीक रचना...बढ़िया भाव..संगीता जी आपका बहुत बहुत आभार..

Avinash Chandra 7/26/2010 8:43 AM  

mera kahna na kahna kya maane rakhta hai..sach aur sab kah diya aape,

samarthan har akshar ka

रेखा श्रीवास्तव 7/26/2010 4:07 PM  

bahut achhi paribhasha dee hai, isako sirph nari deh se hata kar vyapak arth men hi liya jana chahie.
isa naye roop se parichit karane ke liye aabhar.

Deshi Vicharak 7/27/2010 8:11 AM  

balatkar ki vyapak paribhasha.
anchahi cheez bahut kashtdayi hoti hai...
lekin agar parinaam jeevan se jud jaye to atayant bhayankar ho jata hai.

Urmi 7/27/2010 11:16 AM  

बिल्कुल सठिक परिभाषा व्यक्त करते हुए आपने सच्चाई को बखूबी शब्दों में पिरोया है!

KK Yadav 7/27/2010 1:30 PM  

बलात्कार को व्यापक फलक पर देखती सुन्दर रचना...बधाई.

अनुभूति 7/27/2010 2:18 PM  

बहुत मर्म स्पर्शी बात कही हैं आप ने |
बहुत सुन्दर|
आप का मार्ग दर्शन और सानिध्य प्राप्त होता रहे , ये मेरे लिए सोभाग्य की बात होगी |

रणवीर सिंह 'अनुपम' 6/03/2014 5:27 PM  

यह बात बिल्कुल सही है कि इस कृत्य से पीड़ित नारी को शारीरिक एवं मानसिक कष्ट एवं वेदना झेलनी पड़ती है। पर एक सत्य और भी है कि इन भेड़ियों की परवरिश भी एक नारी ही करती है। एक बात और है कि इन घटनाओं का परिणाम पुरुष समाज को भी उतना ही भुगतना पड़ता है जितना नारी समाज को।
आज विचारणीय यह है कि समाज को ऐसे कृत्यों से कैसे बचाया जाय। मेरा मानना है कि हमें अपने बच्चों के परवरिश पर और ध्यान देने की जरूरत है हम उन्हें सिर्फ नौकरानी, आया, टीवी एवं इंटरनेट के भरोसे नहीं छोड़ सकते। हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को साहसिक, देश भक्ति एवं उच्चकोटि का साहित्य पदने को दें जिससे उनका बेहतर चरित्र निर्माण हो।

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