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बीज ख्वाब के

>> Thursday, June 3, 2010







मन की 

बंजर धरती पर 

कुछ ख्वाब 

बो दिए थे 

अश्कों के 

दरिया से सींचा 

पर 

पल्लवित न  हुआ 

एक भी ख्वाब 


फिर 

उतर आई  एक 

उदासी की  घटा 

कि  अचानक 

तेरी  मुस्कान की 

बिजली सी चमकी 

और  बरस  गए 

काले बादल 

बेसाख्ता 

अब 

उजली सी धूप 

निखर आई है 

मन की 

माटी  भी 

महक गयी है 

आज  फिर से 

कुछ बीज 

ख्वाब के 

छींट  दूंगी 

मन की 

धरती पर  .....  





36 comments:

Apanatva 6/03/2010 6:09 PM  

wah kya baat hai.........man kee dharatee par bahar aakar bas jae ye hee duaa hai fir aur lubhavne geet khilenge aap kee bagiya me,,,,,,,,,

रश्मि प्रभा... 6/03/2010 6:10 PM  

आज फिर से

कुछ बीज

ख्वाब के

छींट दूंगी

मन की

धरती पर .....
main sinch dungi

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 6/03/2010 6:18 PM  

मन की
बंजर धरती पर
कुछ ख्वाब
बो दिए थे
अश्कों के
दरिया से सींचा
पर
पल्लवित न हुआ

वाह ! ख़ूबसूरत भाव !

संजय भास्‍कर 6/03/2010 6:25 PM  

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

संजय भास्‍कर 6/03/2010 6:26 PM  

मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
सभी ब्लोगेर साथियों का तहे दिल से शुक्रिया .संजय रहेगा सदा कर्जदार आपका।
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/06/blog-post.html

M VERMA 6/03/2010 6:26 PM  

आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
धरती के बीज अनुकूलित वातावरण पा अंकुरित तो होंगे ही
सुन्दर रचना

Deepak Shukla 6/03/2010 6:41 PM  

Hi di..

Man ki dharti par khwab ke,
beej ankurit rahen sabhi..
Dua humari palvit hon wo..
Khwab koi tute na kabhi..

Kavita jab jab teri padhta..
Antar main halchal hoti hai..
Man ke bhav samete saare..
Kavita shabdon main dhalti hai..

Bahut sundar bhav aur ahsaas..

DEEPAK..

shikha varshney 6/03/2010 7:23 PM  

आज फिर से

कुछ बीज

ख्वाब के

छींट दूंगी
इन पंक्तियों ने सब कुछ कह दिया ...ऐसा ही तो होता है अक्सर
बहुत ही सुन्दर लिखा है .

kshama 6/03/2010 7:27 PM  

Oh! Man ke mausam kaa taqzaa yahi hai..!

Anonymous,  6/03/2010 7:35 PM  

कहाँ से लाती हैं आप ऐसी सोच और अहसास - लाजवाब

अरुणेश मिश्र 6/03/2010 8:25 PM  

संगीता जी !
कविता भी लिखा करो . यह तो ऋचा है ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 6/03/2010 9:04 PM  

सुंदर भाव के साथ.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

दिलीप 6/03/2010 9:14 PM  

waah mam bahut sundar bhaav

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 6/03/2010 9:17 PM  

आज फिर से
कुछ बीज
ख्वाब के
छींट दूंगी
मन की
धरती पर .....

बढ़िया भाव!
हकीकत के भी कुछ पौधे रोप ही देना!

rashmi ravija 6/03/2010 9:56 PM  

तेरी मुस्कान की

बिजली सी चमकी

और बरस गए

काले बादल

बेसाख्ता

अब

उजली सी धूप

निखर आई है
वाह वाह क्या बात कही है ...ऐसी सकारत्मक सोच वाली कविता हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आई...भले ही बिजली ना चमके :)

मनोज कुमार 6/03/2010 10:26 PM  

वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे।

अनामिका की सदायें ...... 6/03/2010 10:35 PM  

बस जी आशाओं के बीज डाल दीजिये खाब अपने आप रूप धारण कर लेंगे...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
बधाई.

अजित गुप्ता का कोना 6/03/2010 11:30 PM  

संगीताजी बहुत ही अच्‍छा लिखा है, बधाई।

संगीता पुरी 6/04/2010 1:17 AM  

आज फिर से

कुछ बीज

ख्वाब के

छींट दूंगी

मन की

धरती पर .....


बहुत अच्‍छे भाव .. सुंदर प्रस्‍तुतिकरण !!

Shabad shabad 6/04/2010 6:54 AM  

संगीताजी,
सुंदर भाव....
....कि अचानक
तेरी मुस्कान की
बिजली सी चमकी
और बरस गए
काले बादल
बेसाख्ता
अब
उजली सी धूप
निखर आई है.....

वाह !
वाह !

Shekhar Kumawat 6/04/2010 8:42 AM  

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.

Avinash Chandra 6/04/2010 9:27 AM  

bahut sundar...bahut hi sakaratmak.
bahut achchha laga ise padhna

रेखा श्रीवास्तव 6/04/2010 10:53 AM  

कुछ बीज

ख्वाब के

छींट दूंगी

मन की

धरती पर .....

क्या बात कही है? कितने प्यारे शब्दों में ढाला है आपने . कुछ कह रही हैं ये पंक्तियाँ.

vandana gupta 6/04/2010 11:06 AM  

बहुत ही सुन्दर भाव भरी रचना……………मन को भिगो गयी।

ज्योति सिंह 6/04/2010 2:38 PM  

pahle mafi chahungi bahar hone ke karan aap sabhi ke blog par nahi aa saki samya se ,magar aaplog ka sahyog phir bhi bana raha ,mausam ke mutabik likhi gayi is sundar rachna ko padhkar man jhoom utha rahat ko liye .shukriyaan .ati sundar .

Udan Tashtari 6/05/2010 1:48 AM  

सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

लता 'हया' 6/05/2010 2:45 AM  

शुक्रिया
एक औरत से बेहतर' इस' शेर का मर्म और कौन समझ सकता है
ख्वाबों के बीज तो अच्छे लगे ही पर जुगलबंदी का अपना मज़ा है

स्वप्निल तिवारी 6/05/2010 11:05 AM  

khaab ugate hain jiski mitti me
us jazeere(iland) ko aankh kahte hain .. :)

mast nazm mumma...dekhiye ek sher ban gaya is pe...:)

योगेन्द्र मौदगिल 6/06/2010 8:41 AM  

Wahwa...Khoobsurat Kavita hai Sandeeta ji.... Sadhuwaad..

रवि कुमार, रावतभाटा 6/06/2010 11:53 AM  

बंजर धरती पर कुछ भी पल्लवित करने के लिए...
काफ़ी श्रम चाहिए...

भावुक रचना...बेहतर...

दिगम्बर नासवा 6/06/2010 5:11 PM  

ख्वाबों की उम्र कम होती है ... पर आपने अपनी रचना में भावनाओं के अनुपम ख्वाब सजाए हैं ...

निर्झर'नीर 6/08/2010 3:34 PM  

तेरी मुस्कान की
बिजली सी चमकी
और बरस गए
काले बादल

kisi ke liye koi kitna ajiij ho sakta h ,ki uski ek muskrahat zindgi ka saar badal deti h ..

Taru 6/10/2010 7:45 PM  

BAHUT KHOOB :):)

man ki mati par 'ankhon ke haathon mein bharkar'' beech main bhi chheent doongi...:D

hehehhehehe

badhaayi mumma..muaaaaaaaaaah !
aapke sab khwaab foolein falein aur Vat-Vriksh banein..:):)

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