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लोकतंत्र का उत्सव

>> Sunday, June 21, 2009




लोकतंत्र का उत्सव


मना रहे इस बार


जनता नेताओं से


खाए बैठी है खार ।


जनता के हाथ में


आ गया एक हथियार


जूते से हैं लैस सब


चलाने को तैयार ।


नेताजी अब सोच रहे


कैसे होगा बेडा पार


भरी सभा में डर रहे


क्या रखें अपने विचार ?


जनता से कर धोखा


और करके अत्याचार


आज खड़े हैं आ कर वो


जूते का पहने हार ।


त्रस्त हुई अब जनता


नेताओं पर कर विश्वास


पर नेताजी घूम रहे


ले कर जीत की आस ।


कोई नहीं है ऐसा नेता


जो सुने जनता की पुकार


जनता तो ठगी ही जायेगी


आए कोई भी सरकार ॥

1 comments:

दिगम्बर नासवा 6/22/2009 1:08 PM  

सच कहा............ जूते चला कर भी जनता ठगी गयी

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