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क्यों लिखती हूँ ?

>> Sunday, June 21, 2009



मन के भावों को

कैसे सब तक पहुँचाऊँ

कुछ लिखूं या

फिर कुछ गाऊँ ।

चिंतन हो

जब किसी बात पर

और मन में

मंथन चलता हो

उन भावों को

लिख कर मैं

शब्दों में

तिरोहित   कर जाऊं ।


सोच - विचारों की शक्ति

जब कुछ

उथल -पुथल सा

करती हो

उन भावों को

गढ़ कर मैं

अपनी बात

सुना जाऊँ

जो दिखता है

आस - पास

मन उससे

उद्वेलित होता है

उन भावों को

साक्ष्य रूप दे

मैं कविता सी

कह जाऊं.

5 comments:

रश्मि प्रभा... 6/21/2009 9:10 PM  

दर्द हो या मन की उड़ान,खुशियों की दस्तकें हों या कोई अनकही बात,
कलम दोस्त बन जाती है,जाने क्या-क्या कह जाती है......

Kamini Sinha 4/18/2022 9:28 PM  

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-22) को क्यों लिखती हूँ ?' (चर्चा अंक 4405) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा

रेणु 4/19/2022 11:35 PM  

सुख और दुख की अनुभूति के तानेबाने का नाम ही कविता है।कोई भी भाव उमढे कविता शब्दों में ढल प्रवहमान हो जाती है।सादर

Sudha Devrani 4/20/2022 10:49 PM  

भावनाओं के प्रसव की उपज है कविता
मन जब उद्वेलित हो मंथन से निकले शब्द मोती गूँथ लिए पन्ने पर बन गयी कविता..
और आपकी कविता आपने जीवन के अनुभव पर आधारित जो पाठक को राह दिखाये...पफ
ढते पढते सीख दे जाये...।
🙏🙏🙏

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/24/2022 3:18 PM  

प्रिय रेणु ,प्रिय सुधा जी
सच तो यही है कि हर रचना प्रसव पीड़ा सहती है । संवेदनशील प्राणी अपनी संवेदना को शब्दों में ढाल कर नव सृजन कर देता है ।
हार्दिक आभार ।

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