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आस्तीन के साँप

>> Monday, September 15, 2008

तुम अमृत हो
तुम विषपान करो
विष को अन्दर ही रहने दो
विष को उगलने के लिए तो
बहुत से विषधर हैं
उनको विष उगलने दो
तुम अमृत बरसाओ
उस वर्षा से
विषधर के भी
विषदंत टूट जायेंगे
हम -
आस्तीन के सौंप
तुम आस्तीन मत धारो
फिर सौंप
आस्तीन में नही पल पायेंगे
दृष्टिकोण बदलो
कुछ नई चेतना लाओ
विष कहते कहते तो
अमृत भी विष हो जायेगा
तुम अमृत हो
तुम विषपान करो

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