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तन्हाई

>> Wednesday, August 27, 2008

क्यों आ जाती है ज़िन्दगी में
रात की तन्हाईयाँ
जब वक्त होता है
ख़ुद को ख़ुद से मिलने का
न कोई शोर होता है
और न ही कोई व्यावधान
उस वक्त ही ,
तन्हाईयाँ चली आती हैं
मिलने नही देतीं
स्वयं को ही स्वयं से
कहीं और खींच
ले जाती हैं सारा ध्यान
और मैं रह जाती हूँ
अकेली -
स्याह रात में खड़ी की खड़ी।

2 comments:

"Nira" 8/27/2008 6:12 PM  

sach tanhayi toh saathi hai.
bhid toh pal ki hoti hai
bahut acha khayal likha hai

taanya 9/09/2008 2:11 PM  

such kehti hai aap jb ek waqt aisa hota hai insaan apne aap se mil sakta hai tab ye hamara mano-mastishk na jaane kon se ghane janglo me kheech ker le jata hai
उस वक्त ही ,
तन्हाईयाँ चली आती हैं
मिलने नही देतीं
स्वयं को ही स्वयं से
कहीं और खींच
ले जाती हैं सारा ध्यान
और मैं रह जाती हूँ
अकेली -
स्याह रात में खड़ी की खड़ी।
ek dam such baat aur sahi chitran..bahut khooob.

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